नैनसुख --------------------------------- "नयनसुख" अर्थात आँखों को सुख पहुँचाने वाला। जिसके पान से आँखों की पिपासा बुझती हो। नैनसुख लघु कला शैली(मिनिएचर पेंटिंग्स) में एक जादुई नाम। भारतीय और पहाड़ी कला शैली में उनका नाम अग्रणी श्रेणी में। नैनसुख को प्रतिभाशाली फ़िल्मकार अमित दत्ता की फ़िल्म "नैनसुख" के बहाने जानने का सुयोग प्राप्त हुआ। नैनसुख आज के हिमाचल प्रदेश के गुलेर में अठारवीं शताब्दी में जन्में थे। जन्म से ही रंग और ब्रुश का साथ रहा क्योंकि पूरा परिवार ही चित्रकला को समर्पित। पिता और बड़े भाई पहाड़ी चित्रकला शैली के सुपरिचित नाम। ऐसे में नैनसुख के लिए चित्रकला एक तरह से विरासत में मिली। परंतु नैनसुख ने अपने लिए एक अलग मार्ग का चुनाव किया। गुलेर जैसी छोटी जगह में बड़े भाई और स्वयं उनके लिए रहना शायद रुचिकर न रहा होगा। उत्तम कोटि के दो चित्रकारों के लिए उस छोटी जगह में रहकर नाम कमाना लिहाज़ा रुतबे और नाम के अनुरूप उचित न हो। इस कारण नैनसुख वहाँ से जसरोटा चले गए और राजा बलवंत सिंह के संरक्षण में क़रीब बीस सालों तक काम किया। इस दौरान कई अन्य संरक्षकों के साथ भ
जीवन प्याज़ है.... कितनी चीजें तो हैं जीवन में सुंदर। प्याज़ की परतें। हल्की बैगनी, सफ़ेद, लाल परतें। हरेक परत के पीछे एक रहस्य। एक परत हटी नही की दूसरी खुलती जाती है। किसे सत्य की अंतिम परकाष्ठा मान लें। कौन सी परत अपने रहस्य को सम्पूर्ण में परिभाषित करें। कोई नही। और भी सुंदर चीजें हैं। पत्तागोभी। मधुमालती की खिलती डालियों में रंग-बिरंगे फूल। बुलबुल का रोज़ सुबह कोई गीत गाना। कितनी तो विविधतायें हैं। सुंदर और मनोरम। और तुम्हारे हाथ की उँगलियाँ, लंबे ग़ुलाबी नखों के अंतिम सिरे पर खिलता सफ़ेद चाँद! नही तुमने निहारा नही होगा कभी ख़ुद को। देखो न कलाइयों के आख़िरी हिस्से का वह काला तिल, पैरों के तलुवों पर बिखरी हुई रेखायें। कभी देखना, नही निहारना ख़ुद को। इतनी भी क्या व्यस्तता है मुह फेरते हो अपने पास की सुंदर चीजों से। माना समय भारी है अभी। पर विश्वास है ना यह बीत जाएगा। देखो प्याज़ का यह टुकड़ा। कितना सुंदर है ना? देखना कभी ख़ुद को संयम और तल्लीनता से। जीवन की कितनी ही शिकायतें कम हो जाएंगी। प्याज़ सुंदर है। देखो इस प्याज़ में भी एक दिल धड़कता है। Pic: Nawal Kishor #onion #pyaaz #nawa