नयनतारा
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सुबह की बातें, इतनी हल्की
जैसी बारिश उतरती है इस फूल पर
चलो फूल बन जाते हैं
नयनतारा का फूल।
ओह! बारिश आ गयी। जल-फुहारें आकाश से झड़ने लगी हैं। देखो हमारी बालकनी में खिलता नयनतारा का फूल खुशी में कैसे झूम रहा है। कितना सुंदर, कितना आकर्षक!
फूल
हाँ सुनो न।
प्रभात, अब रहने दो यह लेख बाद में पूरा कर लेना। देखो बारिश में यह फूल कितना खूबसूरत हो गया है।
सच में आभा। मौसम कितना सुहावना हो गया। बारिश जैसे अपने साथ हरे रंग की फुहारें लेकर आती है। तभी तो चारों ओर सब कुछ हरा दिखने लगता है। हरे रंग की बहुलता। हरे रंग की मादकता से अनुभूत प्रकृति और उसमें नयनतारा का यह फूल।
प्रभात, फूल बनना है मुझे। नयनतारा का फूल।
नयनतारा का फूल?
हाँ ,नयनतारा का फूल। हल्की बैगनी रंग की नयनतारा। पांच कोमल पटलें और उनके केंद्र में हल्की ग़ुलाबी आभा। जैसे मन के केंद्र में बैठा कोई चितचोर। जो चुरा लेता है चुपके से मन को। और तुमने देखी हैं उन पटलों पर खींची हल्की पारदर्शी धारियां। प्रकृति ने जैसे अपनी कोमल उंगलियों से उनपर हाथ फेरा हो। जैसे किसी ने कोई आश्वश्त हाथ हमारे कंधे पर रख दिया हो जब हम परेशां होते हैं।
नयनतारा। उफ़्फ़ कितना खूबसूरत है यह फूल। तुमने देखा है कभी नयनतारा को पानी मे भीगते हुए। पानी की बूंदों से पत्तियों का सराबोर हो और सब्ज हो जाना। गहरा हरा रंग जैसे अपने होने की हद को पार कर गया हो। यौवन जैसे उम्र की दहलीज़ पर हिलोरे ले रहा हो। और एक सफ़ेद धार जो इन पत्तियों के मध्य से गुज़र जाती है। जैसे किसी नायिका ने अपने बाल संवार एक पतली मांग निकाल ली हो। किसी गिलहरी के सर पर जैसे किसी ने कोई सफ़ेद टिप दे दी हो।
आभा, मुझे तो नयनतारा तुम्हारे आंखों की श्वेतपटल जैसी लगती है। पूरा सफ़ेद पटल और उसके बीच मे एक द्वीप सी काली पुतलियां। ये पुतलियां बैगनी फूल में गुलाबी आभा जैसी दिखती हैं। फूल का यह गुलाबी हिस्सा तो तुम्हारे नखों की ग़ुलाबी आभा जैसा दिखता है। मेरी प्यारी आभा। मेरी नयनतारा।
सच में। और प्रभात, बारिश में देखो इस फूल को। इसके पटल पर बारिश कैसे आकर ठहर जाती है। जैसे सुबह का कोई जिद्दी ख़्वाब बिस्तर के सिरहाने बैठा हो, न जाने के लिए। पर नींद के चटखते ही एक पराये की तरह ऐसे दूर हो जाता है जैसे वह कभी नींद का हिस्सा ही न हो। बेख़बर ख़याल जो सहमा सा ठहरा होता है विचारों के खगोल में।
प्रभात, बारिश का शीतल जल भी कुछ ऐसे ही ठहरता है। जैसे हम ठहर जाते हैं किन्ही पुराने ख़यालों में। दूर का कोई गीत जैसे धुंधला सा सुनने में आता है। कुछ सुख के पल जिन्हें हम वापस लाना चाहते हो। पर वह रिरियाता हुआ अपने पैर जमीन में घसीटता है। जल की बूंदें भी कुछ इसी तरह इस फूल पर रहना चाहती हैं। पर कैसे तो फ़िसल जाता है यह जल-कण?
ओह! पर आभा, जल-बूंदों का फूल से फिसलकर गिर जाना ही उनकी नियति है। फतिंगों को प्रकाश स्रोत के समीप जाकर खुद को खोना होता है। यह प्रेम है फतिंगे का प्रकाश स्रोत से। यह निश्छल प्रेम है जल-कण और नयनतारा के फूल का। प्रेम अक्सर विरह में ही उजागर होता है।
हाँ। मैं भी यही सोचती हूँ । हर साल यह फूल बारिश में ऐसे ही खिलता है। सदियों से इसने प्रकृति के प्रेम को अपने मे ऐसे ही संजोया है। और हाँ, देखों न जल, बारिश, हवा , प्रकाश और नयनतारा का यह फूल। कोई भी अपने मे अकेला सम्पूर्ण नही हो सकता। इनकी कहानी इन सबके एक साथ होने में है।
पता है प्रभात, दुनिया एक से नही बनती। हम दुनिया मे अकेले कुछ नही। हाँ दुनिया का एक हिस्सा जरूर हमारे भीतर कैद है।
हमारी पूर्णता इस प्रकृति में अपने को खोने में है। अपने को इनका हिस्सा होने पर है।
जैसे नयनतारा का यह फूल। कितना सम्पूर्ण दिखता है। मुझे नयनतारा बनना है। सम्पूर्ण और खुशी से ओतप्रोत।
आभा, तुम नयनतारा हो मेरी। और मैं तुम्हारा जल-कण। हम दोनों एक साथ सम्पूर्ण हैं इस फूल की तरह। इस प्रकृति की तरह।
~n
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सुबह की बातें, इतनी हल्की
जैसी बारिश उतरती है इस फूल पर
चलो फूल बन जाते हैं
नयनतारा का फूल।
ओह! बारिश आ गयी। जल-फुहारें आकाश से झड़ने लगी हैं। देखो हमारी बालकनी में खिलता नयनतारा का फूल खुशी में कैसे झूम रहा है। कितना सुंदर, कितना आकर्षक!
फूल
हाँ सुनो न।
प्रभात, अब रहने दो यह लेख बाद में पूरा कर लेना। देखो बारिश में यह फूल कितना खूबसूरत हो गया है।
सच में आभा। मौसम कितना सुहावना हो गया। बारिश जैसे अपने साथ हरे रंग की फुहारें लेकर आती है। तभी तो चारों ओर सब कुछ हरा दिखने लगता है। हरे रंग की बहुलता। हरे रंग की मादकता से अनुभूत प्रकृति और उसमें नयनतारा का यह फूल।
प्रभात, फूल बनना है मुझे। नयनतारा का फूल।
नयनतारा का फूल?
हाँ ,नयनतारा का फूल। हल्की बैगनी रंग की नयनतारा। पांच कोमल पटलें और उनके केंद्र में हल्की ग़ुलाबी आभा। जैसे मन के केंद्र में बैठा कोई चितचोर। जो चुरा लेता है चुपके से मन को। और तुमने देखी हैं उन पटलों पर खींची हल्की पारदर्शी धारियां। प्रकृति ने जैसे अपनी कोमल उंगलियों से उनपर हाथ फेरा हो। जैसे किसी ने कोई आश्वश्त हाथ हमारे कंधे पर रख दिया हो जब हम परेशां होते हैं।
नयनतारा। उफ़्फ़ कितना खूबसूरत है यह फूल। तुमने देखा है कभी नयनतारा को पानी मे भीगते हुए। पानी की बूंदों से पत्तियों का सराबोर हो और सब्ज हो जाना। गहरा हरा रंग जैसे अपने होने की हद को पार कर गया हो। यौवन जैसे उम्र की दहलीज़ पर हिलोरे ले रहा हो। और एक सफ़ेद धार जो इन पत्तियों के मध्य से गुज़र जाती है। जैसे किसी नायिका ने अपने बाल संवार एक पतली मांग निकाल ली हो। किसी गिलहरी के सर पर जैसे किसी ने कोई सफ़ेद टिप दे दी हो।
आभा, मुझे तो नयनतारा तुम्हारे आंखों की श्वेतपटल जैसी लगती है। पूरा सफ़ेद पटल और उसके बीच मे एक द्वीप सी काली पुतलियां। ये पुतलियां बैगनी फूल में गुलाबी आभा जैसी दिखती हैं। फूल का यह गुलाबी हिस्सा तो तुम्हारे नखों की ग़ुलाबी आभा जैसा दिखता है। मेरी प्यारी आभा। मेरी नयनतारा।
सच में। और प्रभात, बारिश में देखो इस फूल को। इसके पटल पर बारिश कैसे आकर ठहर जाती है। जैसे सुबह का कोई जिद्दी ख़्वाब बिस्तर के सिरहाने बैठा हो, न जाने के लिए। पर नींद के चटखते ही एक पराये की तरह ऐसे दूर हो जाता है जैसे वह कभी नींद का हिस्सा ही न हो। बेख़बर ख़याल जो सहमा सा ठहरा होता है विचारों के खगोल में।
प्रभात, बारिश का शीतल जल भी कुछ ऐसे ही ठहरता है। जैसे हम ठहर जाते हैं किन्ही पुराने ख़यालों में। दूर का कोई गीत जैसे धुंधला सा सुनने में आता है। कुछ सुख के पल जिन्हें हम वापस लाना चाहते हो। पर वह रिरियाता हुआ अपने पैर जमीन में घसीटता है। जल की बूंदें भी कुछ इसी तरह इस फूल पर रहना चाहती हैं। पर कैसे तो फ़िसल जाता है यह जल-कण?
ओह! पर आभा, जल-बूंदों का फूल से फिसलकर गिर जाना ही उनकी नियति है। फतिंगों को प्रकाश स्रोत के समीप जाकर खुद को खोना होता है। यह प्रेम है फतिंगे का प्रकाश स्रोत से। यह निश्छल प्रेम है जल-कण और नयनतारा के फूल का। प्रेम अक्सर विरह में ही उजागर होता है।
हाँ। मैं भी यही सोचती हूँ । हर साल यह फूल बारिश में ऐसे ही खिलता है। सदियों से इसने प्रकृति के प्रेम को अपने मे ऐसे ही संजोया है। और हाँ, देखों न जल, बारिश, हवा , प्रकाश और नयनतारा का यह फूल। कोई भी अपने मे अकेला सम्पूर्ण नही हो सकता। इनकी कहानी इन सबके एक साथ होने में है।
पता है प्रभात, दुनिया एक से नही बनती। हम दुनिया मे अकेले कुछ नही। हाँ दुनिया का एक हिस्सा जरूर हमारे भीतर कैद है।
हमारी पूर्णता इस प्रकृति में अपने को खोने में है। अपने को इनका हिस्सा होने पर है।
जैसे नयनतारा का यह फूल। कितना सम्पूर्ण दिखता है। मुझे नयनतारा बनना है। सम्पूर्ण और खुशी से ओतप्रोत।
आभा, तुम नयनतारा हो मेरी। और मैं तुम्हारा जल-कण। हम दोनों एक साथ सम्पूर्ण हैं इस फूल की तरह। इस प्रकृति की तरह।
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