Skip to main content

Posts

Showing posts from July, 2020

नैनसुख

नैनसुख --------------------------------- "नयनसुख" अर्थात आँखों को सुख पहुँचाने वाला। जिसके पान से आँखों की पिपासा बुझती हो। नैनसुख लघु कला शैली(मिनिएचर पेंटिंग्स) में एक जादुई नाम।  भारतीय और पहाड़ी कला शैली में उनका नाम अग्रणी श्रेणी में। नैनसुख को प्रतिभाशाली फ़िल्मकार अमित दत्ता की फ़िल्म "नैनसुख" के बहाने जानने का सुयोग प्राप्त हुआ। नैनसुख आज के हिमाचल प्रदेश के गुलेर में अठारवीं शताब्दी में जन्में थे। जन्म से ही रंग और ब्रुश का साथ रहा क्योंकि पूरा परिवार ही चित्रकला को समर्पित। पिता और बड़े भाई पहाड़ी चित्रकला शैली के सुपरिचित नाम। ऐसे में नैनसुख के लिए चित्रकला एक तरह से विरासत में मिली। परंतु नैनसुख ने अपने लिए एक अलग मार्ग का चुनाव किया। गुलेर जैसी छोटी जगह में बड़े भाई और स्वयं उनके लिए रहना शायद रुचिकर न रहा होगा। उत्तम कोटि के दो चित्रकारों के लिए उस छोटी जगह में रहकर नाम कमाना लिहाज़ा रुतबे और नाम के अनुरूप उचित न हो। इस कारण नैनसुख वहाँ से जसरोटा चले गए और राजा बलवंत सिंह के संरक्षण में क़रीब बीस सालों तक काम किया। इस दौरान कई अन्य संरक्षकों के साथ भ

प्याज़

जीवन प्याज़ है.... कितनी चीजें तो हैं जीवन में सुंदर। प्याज़ की परतें। हल्की बैगनी, सफ़ेद, लाल परतें। हरेक परत के पीछे एक रहस्य। एक परत हटी नही की दूसरी खुलती जाती है। किसे सत्य की अंतिम परकाष्ठा मान लें। कौन सी परत अपने रहस्य को सम्पूर्ण में परिभाषित करें। कोई नही। और भी सुंदर चीजें हैं। पत्तागोभी। मधुमालती की खिलती डालियों में रंग-बिरंगे फूल। बुलबुल का रोज़ सुबह कोई गीत गाना। कितनी तो विविधतायें हैं। सुंदर और मनोरम। और तुम्हारे हाथ की उँगलियाँ, लंबे ग़ुलाबी नखों के अंतिम सिरे पर खिलता सफ़ेद चाँद! नही तुमने निहारा नही होगा कभी ख़ुद को। देखो न कलाइयों के आख़िरी हिस्से का वह काला तिल, पैरों के तलुवों पर बिखरी हुई रेखायें। कभी देखना, नही निहारना ख़ुद को। इतनी भी क्या व्यस्तता है मुह फेरते हो अपने पास की सुंदर चीजों से। माना समय भारी है अभी। पर विश्वास है ना यह बीत जाएगा। देखो प्याज़ का यह टुकड़ा। कितना सुंदर है ना? देखना कभी ख़ुद को संयम और तल्लीनता से। जीवन की कितनी ही शिकायतें कम हो जाएंगी। प्याज़ सुंदर है। देखो इस प्याज़ में भी एक दिल धड़कता है। Pic: Nawal Kishor #onion #pyaaz #nawa

नयनतारा

नयनतारा --------------------------------------- सुबह की बातें, इतनी हल्की जैसी बारिश उतरती है इस फूल पर चलो फूल बन जाते हैं नयनतारा का फूल। ओह! बारिश आ गयी। जल-फुहारें आकाश से झड़ने लगी हैं। देखो हमारी बालकनी में खिलता नयनतारा का फूल खुशी में कैसे झूम रहा है। कितना सुंदर, कितना आकर्षक! फूल हाँ सुनो न।  प्रभात, अब रहने दो यह लेख बाद में पूरा कर लेना। देखो बारिश में यह फूल कितना खूबसूरत हो गया है। सच में आभा। मौसम कितना सुहावना हो गया। बारिश जैसे अपने साथ हरे रंग की फुहारें लेकर आती है। तभी तो चारों ओर सब कुछ हरा दिखने लगता है। हरे रंग की बहुलता। हरे रंग की मादकता से अनुभूत प्रकृति और उसमें नयनतारा का यह फूल। प्रभात, फूल बनना है मुझे। नयनतारा का फूल। नयनतारा का फूल? हाँ ,नयनतारा का फूल। हल्की बैगनी रंग की नयनतारा। पांच कोमल पटलें और उनके केंद्र में हल्की ग़ुलाबी आभा। जैसे मन के केंद्र में बैठा कोई चितचोर। जो चुरा लेता है चुपके से मन को। और तुमने देखी हैं उन पटलों पर खींची हल्की पारदर्शी धारियां। प्रकृति ने जैसे अपनी कोमल उंगलियों से उनपर हाथ फेरा हो। जैसे किसी ने को

अक्षरों का अदब.

अक्षरों का अदब ----------------------------- हम कुछ नही सोचते। हम शब्दों को सोचते और उनके द्वारा ही जीवन पाते हैं। सत्य नही, पर शब्दों के सौरमंडल में अर्धसत्य। अक्षरों से मिलकर शब्दों का बनना। कितनी बेहिसाब तो साझेदारी होती होगी अक्षरों को एक शब्द रूपी घर में रहने की ख़ातिर। कभी कभार हल्की नोक-झोंक और उठा पटक भी होती होगी अक्षरों में किसी गंभीर, नटखट और आवारा शब्द को गढ़ने उसे एक आयाम, एक निर्दिष्ट मानी, एक अनुभव और एक भावना को यथार्थ में उतारने के लिए। अक्षरों और शब्दों में कितनी तो अदब होती है। इतनी शालीनता, धैर्य , खुदगर्ज़ी और भावुकपन। अदब इतनी की कुछ अक्षर और शब्द इतने शर्मीले और संकोच से मिलते हैं कि उन्हें न्योता देना होता है आने के लिए। परस्पर सम्मान और पाक नियत से ही वह आते हैं और बसते हैं उन लाइनों, वाक्यों में जहाँ हम उनकी जगह चाहते हैं। सीढ़ियों पर खड़े शब्द जब ऊपर आते हैं तो एक सघन अदबता भी उनके साथ ऊपर आती है। और वह सकुचाकर हमारे जहन रूपी कमरे में प्रवेश करते हैं। प्रेम और भाव का कितना तो मेह बरस जाता होगा इस दौरान। अक्षरों और शब्दों को रखना होता है सहेजकर अदब क
बेलें.... ------------------------------------- प्रकृति ने जीव को जीने की तमाम कलायें देने के बाद सबसे ख़ूबसूरत और बेशक़ीमती तोहफ़ा 'आशा' यानी होप का दिया होगा। उसकी जिजीविषा को बहुमूल्य सौगात। हमनें शताब्दियों का सफ़र इस वास्ते किया कि हमारे इक क़दम के आगे दूसरा क़दम था, हमारी इक स्याह रात के बाद उजाले की दूसरी सुबह थी, बेसब्र इंतेज़ार के बाद ख़ुशी का सुकून और हमारी एक चाह के बाद दुनिया को आगे बढ़ने की दूसरी तमन्ना थी। जैसे पौध की कोमल, सुकुमार बेलें।  कितनी तो मुलायम, पर इच्छा इतनी तटस्थ की दृढ़ पर्वतों और दुर्गम जगहों में भी अपने जीने की राह ख़ोज लें। फ़िल्म 'द शौशैंक रिडेम्प्शन' का एक यादगार डायलाग बरबस याद आ जाता है जब एंडी लिखता है-"आशा एक अच्छी चीज है, शायद सबसे अच्छी चीज, और कोई भी अच्छी चीज कभी नहीं मरती।" इसी तरह कभी साहिर लुधियानवी ने लिखा था - "जो रास्तों के अंधेरों से हार जाते हैं, वे मंजिलों के उजाले को पा नही सकते।" बेलें- जीने का इतना सुंदर अफ़साना, बढ़कर जीवन की डोर थामने की अप्रतिम कोशिश और जिंदगी को गले लगा उसे प्रेम करने का ना
चाँदनी ------------------------------------- भई तृप्त सावन के बूंदाकड़े पीकर खिलती हो चांदनी मधुरमय होकर!!              वर्षा-काल में यदि जल-प्रलय से कोई छति न होती तो इससे मनभावन और कोई ऋतु नही। वर्षा के कारण वाटिकाओं का हर्सोल्लासित हो हरित वस्त्र धारण कर चहक उठना भला किसे नही भाता। जेठ की झुलसती तपिश के बाद बारिश का आना किसी त्योहार से तनिक भी कम नही। और तिसपर वाटिकाओं, गृह-परिसरों और वनस्थलों में पुष्पों का खिलना। जैसे मेह के रस को पादपों द्वारा अपने अंग-प्रत्यंग में पपीहे की तरह रसपान करना। एक अनंत आनंद की अनुभूति।  वैसे तो वर्षा-काल में कुछेक पुष्प ही पुष्पित होते हैं। बसंत के स्वागत में पहले ही सारे पुष्प अपनी वार्षिक सौंदर्य-प्रदर्शन कर चुके होते हैं। जो जेठ की गर्मी को सहकर खिलते हैं वह ढीठ होते हैं। इन्ही पुष्पों में एक चिरपरिचित पुष्प है चाँदनी। श्वेत वर्ण का यह पुष्प वैसे तो पूरे साल ही अपनी मनोहर छटा बिखेरता है परंतु बारिश में यह और भी मादक और आकर्षक लगता है। महाकवि कालिदास ने मेघदूत में कई पुष्पों का वर्णन किया है जैसे कि अशोक, रक्तवर्णी कुरबक, शिरीष इत्यादि,